
अपनी माटी को तरसते विदेशी शव । पाकिस्तान के दो बंदियों के शव अपने मुल्क की माटी के लिए तरस रहे हैं। जिन्दा रहते इन्होंने जो गुनाह किया था। उसका नतीजा है कि मौत के बाद भी इन्हें कफन-दफन हासिल नहीं हो रहा। ये दोनों गैरकानूनी रूप से हिन्दुस्तान की सरजमीं में घुस आए थे। विचाराधीन कैदी रहते हुए बीमार पड़े व मौत हो गई। लम्बी कानूनी प्रक्रिया के कारण इनके शव यहां सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के शारीरिक संरचना विभाग में "दम" तोड़ रहे हैं। एक शव करीब चार माह से तथा दूसरा सवा माह से रसायनों के सहारे रखा हुआ है। इस सहारे में यदि थोड़ी सी भी चूक हो गई तो मिट्टी की मिट्टी होने में देर नहीं लगेगी। शव चाहे अपने मुल्क के बासिन्दे का हो या परदेशी का आखिर है तो इंसान का ही। फिलहाल शवों को उनके मुल्क भेजने की प्रक्रिया राज्य व केन्द्र के गृह तथा विदेश मंत्रालय के बीच झूल रही है।केन्द्रीय कारागार श्रीगंगानगर के विचाराधीन बंदी पाकिस्तान के बहावलपुर निवासी मोहम्मद बशीर (60) की तबीयत बिगड़ने पर उसे 27 जनवरी 2010 को यहां के पीबीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इलाज के दौरान 28 जनवरी को उसकी मृत्यु हो गई। इसी तरह केन्द्रीय कारागार श्रीगंगानगर के विचाराधीन बंदी पाकिस्तान के चक 12 निवासी मुखत्यार अली (45) को तबीयत बिगड़ने पर गत पांच अप्रेल को पीबीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां 17 अप्रेल को उसकी मृत्यु हो गई। दोनों शवों के संबंध में पीबीएम अस्पताल प्रशासन ने केन्द्रीय कारागार बीकानेर के अधीक्षक को तीन बार पत्र दे दिए। उसमें बताया गया कि चूंकि इनका पोस्टमार्टम करवाया गया है, इसलिए इन्हें ज्यादा समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता।आदेश के इंतजारजेल अधीक्षक एस. के. माथुर ने बताया कि दोनों पाक बंदियों की मृत्यु की सूचना महानिदेशक (जेल) कार्यालय के माध्यम से गृह विभाग को तत्काल ही कर दी गई थी। अब गृह विभाग विदेश मंत्रालय व पाक दूतावास से इस संबंध में सम्पर्क कर रहा है। वहां से कोई आदेश मिलने पर ही शवों के बारे में फैसला हो सकेगा।हर पल नजरएनोटॉमी विभाग में रखे पाक बंदियों के शवों की चिकित्सकों व स्टाफ को हर दिन सार-संभाल करनी पड़ती है। शव को ज्यादा समय तक सुरक्षित रखने के लिए फॉरमलिन नामक रसायन के इंजेक्शन लगाए जाते है। यह शरीर के प्रत्येक अंग पर लगाने पड़ते हैं। इन्हें रसायन व पानी के मिश्रित घोल में रखा जाता है ताकि सड़ांध न मारे।
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