रविवार, 20 जून 2010

बारमेर न्यूज़ TRACK


बाड़मेर: कंठ-कंठ में बसे लोक गीत
बाड़मेर: राजस्‍थान के मरुधरा के गौरव बाड़मेर जिले की समृद्ध लोक कला, गीत, संगीत तथा लोक संस्कृति का बखान अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है। स्थानीय लोक कलाकार झोपड़ों से निकल अलबर्ट हॉल तक जा पहुंचे हैं। जिले की लोक गीत गायन की अपनी विशिष्ट शैली ने यहां के मांगणियार लोक कलाकारों को एक नई पहचान दी है।यहां सामाजिक, पारिवारिक तथा लौकिक जीवन का कोई एक पहलू नहीं हैं, जो लोक गीतों की स्वर लहरियों से अछूता रह गया हो। जीवन का आनंद, उत्‍साह और मानवीय सम्बन्धों का अपना प्रवाह इन लोक गीतों में मुखर हुआ है। प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्धों में हास्य व रूदन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति तथा लोक जीवन के सभी रंगों व रासों को लोकगीतों में पाया जा सकता हैं। नारी-पुरूष के कोमल कंठों से निकले मरूधरा के लोकगीत श्रोताओं को अभिभूत कर देते हैं। व्यंग्य तथा जीवन के आदेश भी लोकगीतों में मिल जाते हैं।प्रकृति के विभिन्न उपादानों को इन गीतो में बड़ी करूण अभिव्यक्ति मिली है। चमेली, मोगरा, हंजारा, रोहिडा के फूल भी तथा कुरजा, कोआ, हंस, मोर (मोरिया), सुवटिया (तोता), सोन चिड़िया, चकवा-चकवी जैसी प्रेमी-प्रेमिका प्रियतमाओं, विरही-विरहणियों आदि के सुख-दुख की स्थितियों में संदेश वाहक बने हैं। विश्व भर में अपनी जादुई आवाज, खड़ताल वादन के माध्यम से अपनी धाक जमाने वाले कलाकारों ने थार नगरी का नाम विश्व में ऊंचा किया है। बाड़मेर जिले के कण-कण में लोकगीत रचे बसे हैं।माटी की सोंधी महक इन लोकगीतों के स्वर को नई ऊंचाइया प्रदान करती है। फागोत्सव के दौरान फाग गाने की अनूठी परम्परा, बालकों के जन्म अवसर पर हालरिया, विरह गीत, मोरूबाई, दमा दम मस्त कलन्दर, निम्बुडा-निम्बुडा, बींटी महारी, सुवटिया, इंजन री सीटी में मारो मन डोले, बन्ना गीत, अम्मादे गाड़ी रो भाड़ो, कोका को बन्नी फुलका पो सहित सैंकडों लोकगीत परम्पराओं का निर्वाह कर रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें